होरी हे रिंगी चिंगी

रंग मया के डारव संगी

फागुन के महिना रिंगी चिंगी रंगरेलहा अउ बेलबेलहा बरोबर हमर जिनगी मा समाथे। जिनगी के सुख्खा और कोचराय परे रंग मा होरी हा मया-पिरीत,दया-दुलार,ठोली-बोली,हाँसी-ठिठोली के सतरंगी रंग ला भरथे। बसंत रितु हा सरदी के बिदा करे बर महर-महर ममहावत-गमकत गरमी ला संगवारी बनाके फागुन के परघनी करथे। फागुन के आये ले परकीति मा चारों खूँट आनी-बानी के रिंगी-चिंगी रंग बगर जाथे। गहूँ के हरियर रंग,सरसों के पिंयर रंग,आमा मँउर के सोनहा रंग,परसा के आगी बरन लाली रंग,जवाँ,अरसी फूल अउ अँगना मा गोंदा, गुलाब,किसिम-किसिम के फूल घलो छतनार फुले फागुन के परघनी मा जुरियाय रथें। इंखर बिन का बसंत के गीत अउ का फागुन के फाग। कारी कोइली हा घलाव फागुन के फदगे के हाँका पारथे मा भिंङ जाथे।
जिनगी मा इही जम्मो रिंगी चिंगी रंग के घातेच महत्तम रथे। ए रंग-बिरंग के बिन सरी जग अउ जिनगी हा सुन्ना, सुक्खा अउ जुच्छा जइसन जनाथे। ए रंग के महत्तम सबले जादा फागुन मा दिखथे। परकीति के संगे संग मनखे मन मा घलाव हाँसी-ठिठोली,मया-पिरीत अउ उमंग-उछाह के मनरंगी रंग हा सबला अपन संग मा, अपन रंग मा रंगे बर बङ सधाय रथें। होरी हा सिरिफ परकीति के सातरंगिया रंग ले जादा हिरदे के रंग ला बगराय के तिहार हरय। एखरे सेती होरी तिहार मा मनखे के जिनगी मा दुख-दरद के काँटा-खूँटी ला बहार के बार दे के खच्चित जरुरत रथे। एखरे कारन ए तिहार हा हमर हदास जिनगी मा मया-दया के नवरंग भरथे। होरी के रंग गुलाल ले जादा मन के भाव मा जादा आनंद आथे। मन के भाव बिन जिनगी के सुख-सुबिधा के गुरतुर सोनहा रंग हा घलाव सिट्ठा अउ सोखर्रा लागथे। जिनगी के जम्मो खुसी मन ला जोर सकेल के सरी संसार ला देखाय के ,बताय के कोनो ओंङहर खोजथे परकीति हा। इही ओखी बसंत,फागुन अउ होरी हा हरय।
होरी तिहार हा हमर देस के एकठन सबले अलगेच सांस्किरतिक अउ अधियातमिक तिहार हरय। हमर भारत देस मा अलग-अलग रंग-रुप, बोली-भाखा, तीज-तिहार, खान-पान,रहन-सहन,भाखा-भेस अउ जम्मो जीनिस हा अलगेच हावय फेर रंग-बिरंगी होरी के रंग हा सरी देस ला एकमई सुमता के रंग मा रंगा देथे। अधियात्म के अर्थ होथे-: मनखे के ओखर ईसवर संग संबंध या फेर खुद के खुदेच संग संबंध होवई हरय। एखरे सेती होरी तिहार हा आत्मा ले परमात्मा के अउ मनखे के अपन खुद ले अपनेच खुद के संग साक्छातकार के परब आय। असल मा ए होरी तिहार हा अनन मन के भीतर उपजे दोस-बुराई के बिरुद्ध मा उठ खङे होय के तिहार आय। होरी हा हमला नवा ढ़ंग ले जिनगी जीये के अंदाज सिखोथे। सुवारथ ला लेसे के, जलाय के अउ पर-पीरा ला अपनाय के,सुख ला बाँटे अउ बगराय के, मनखे के संवेदना ला सकेले के उदिम करे के तिहार हरय। आनंद अउ उछाह के सबले बङे होरी तिहार हा ऊँच-नीच, छोटे-बङे अउ गरीब-बङहर के भेदभाव ला मेटा के हाँसी-खुसी, मया-पिरीत के रंग मा रंगथे अउ जिनगी ला सतरंगी बनाथे। होरी के मन मोहना रंग के फोहार मा पियार, सुमता अउ भाईचारा ले हमर समाज हा भिंजथे। रंग गुलाल हा चारों खूँट उङथे अउ नाच-गान करके सोर मचाथे अउ कथे सबले बढ़िया मया रंग हा होथे। ए रंग हा कभू नइ उतरय। मया-परेम के रंग मा आनी-बानी के रोटी-पीठा के संग होरी के तिहार मा जोस उछाह हा दुगुना हो जाथे। होरी हा जम्मो लइका,जेवान अउ सियान मन ला एकमई कर देथे। बैरी-दुसमनी के गांठ हा खुल जाथे अउ मया के बंधना मा बंधा जाथें। दुनिया भर मा हजारों किसिम के रंग हावय जउन हा जिनगी ला रंग बिरंगी बनाथे फेर ए मन के रंग नइ कहाय। सबले सुग्घर अउ सिरतोन पक्का रंग मन के होथे,मया के रंग होथे जउन हा जिनगी भर अपन संग नइ छोङय। मया के रंग के आगू मा जम्मो रंग हा फिक्का हावय।
दु दिन चलइया राग अउ रंग के परब होरी तिहार हा महीना भर पहिली ले अपन अघुवा बसंत ला बनाय रथे। मतौना बइहा बसंत हा होरी के परघनी मा कोनो कसर नइ छोङय। कोइली हा संदेशिया होथे। फागुन के फाग अउ बसंत के राग होरी के संगवारी हरँय। राग के मतलब गीत-संगीत अउ रंग के मतलब रंग-गुलाल होथे। फागुन महीना मा परकीति घलो हा अपन भरे जेवानी मा रथे। एखरे सेती होरी तिहार मा जम्मो जगत भर ला जेवानी छाय रथे अउ सबो मस्तियाय रथें। बसंत पंचमी ले गुलाल उङे के सुरुवात हो जाथे तेन हा फागुन महीना के पुन्नी अउ रंग पंचमी के आवत ले नइ सिरावय। गुलाल के सोर उङत रथे। बसंत पंचमी ले नंगाङा के गुरतुर धुन कान मा मिसरी घोरे ला धर लेथे। रुख, राई, फूल-फर, चिरई-चिरगुन अउ मनखे मन ला ए फागुन के नसा छा जाथे। किसान अपन खेत मा सरसों,जवा,अरसी अउ गहूँ के गेदराय बाली मन ला देख के मने मन मगन होथे। तन मन हा झुमे लागथे। इही खुसी मा होरी के उछाह हा दुहरी हो जाथे। ढ़ोलक-नंगारा, मांदर-झाँझ, मंजीरा के धुन हा फागुन के मतौना पुरवाही मा जम्मो जग हा बूङ जाथे, सना जाथे।
होरी सिरिफ रंग गुलाल उङाय,एक दुसर उपर लगाय के,पी खा के मेछराय के तिहार नो हे। ए तिहार हा अपन गरब-गुमान ला होरी के लकङी जइसन जला के, लेस के बैरी अउ दुसमनी ला भुलाय के, छमा अउ मया के रंग मा चिभोरे के, एकमई करे के तिहार हरय। ए परकीति घलाव हा हमला ए रिंगी चिंगी संसार मा सबले सुग्घर अउ जिनगी भर झन छुटय अइसन मया के रंग सिरिफ मनखे भर ला दे हावय। आवव ओखर भरपूरहा उपयोग करीन। चार दिनिया रंग ले बाँचे के जरुरत हावय। मया-पिरीत के रंग मा ए संगी-संगवारी अउ सरी संसार ला रंग डारिन जउन मरत ले झन छुटय। ए जिनगी हा मया-दया अउ पिरीत के रंग बिना अबिरथा हावय। हमर गरब-गुमान,धन-दोगानी,रुप-रंग सबो जीनिस हा मया-पिरीत के बिना जुच्छा हे, सुन्ना हावय। जइसे सुग्घर साग हा बिन नून के खइता हावय अइसने ए जिनगी हा बिन मया-पिरीत रंग के अधूरा हावय। ए होरी के तिहार हा हमला जिनगी जीये के रंग ढ़ंग ला सीखोथे। रंग हा दुसर बर मया देखाय के अउ बताय के एक ठन माधियम हरय। जम्मो रंग के एकेच परकिति हे के घुर के एकमई होवई अउ दुसर उपर समाना। रंग मन ला कभू एक दुसर उपर जबरपेली चढ़ाय नइ जाय। वोहा तो घुर के अपने अपन दुसर संग मा समा जाथे, एकमई हो जाथे। हमर धोबी-बरेठ भाई मन घलाव पहिली कोनो भी रंग ला घोरथे फेर वोमा कपङा ओनहा ला बुङोथे तभे रंगथे। अइसने हमर मन मा पहिली मया-पिरीत के रंग ला घोरे ला परही फेर दुसर के मन ला वोमा चिभोरे ला परही तभे वोहा हमर मया के रंगनी मा रंग जाही। एखर ले एके ठन गोठ समझ मा आथे के दुसर ला अपन रंग मा रंगे के पहिली खुद अपन आप ला ओही रंग मा रंगे ला परही जउन रंग मा हम दुसर ला रंगना चाहत हन। अइसने कोनो परानी हा पखरा नो हे जउन हा मया-पिरीत के आँच मा पिघलही नहीं। अइसन कोनो हिरदे नइ हे जउन हा परेम के रंग मा रंगना नइ चाहँय। हमला सिरिफ सही अउ उचित मनमरजी रंग के चिन्हारी करे के जरुरत हावय। मन के रंग हा मरत ले ना धोवाय ना छुटय। मया, दया, पिरीत, सत-इमान, आनंद- उछाह, सरद्धा, बिसवास, मान-गउन,छमा-असीस के पक्का रंग हा सबके जिनगी ला सतरंगी अउ मनरंगी बना दीही। आवव संगवारी हो ए दरी बजरहा रंग के जघा मा ए जम्मो जोरदरहा रंग ला जादा बउरन अउ अंतस ला रिंगी चिंगी करन।

*कन्हैया साहू “अमित”*
परशुराम वार्ड-भाटापारा
संपर्क-9200252055

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